पाचन [Digestive System] :-
जटिल पोषकों का सरल पोषकों में बदलना पाचन [Digestion] कहलाता है
पाचन के प्रकार – पाचन 2 प्रकार का होता है
अंतः कोशिकीय पाचन :- यह प्रोटोजोआ, पोरिफेरा
आदि में होता है | इस प्रकार के पाचन में एंजाइम लाईसोसोम से प्राप्त होते है |
बाह्य कोशिकीय पाचन :- इस प्रकार का पाचन आहारनाल में होता है |
पाचन तंत्र [Human Digestive System] :-
Serial No | Digestive Organs | Digestive Glands |
---|---|---|
1 | Mouth | Salivary Gland |
2 | Pharynx | Liver |
3 | Oesophagus | Pancreas |
4 | Stomach | |
5 | Intestine |
पाचन अंग [Digestive Organs] :-
मुख {mouth} :-
दांत {teeth} :-
मानव के पुरे जीवनकाल में दो प्रकार के दांत आते है अर्थात्
मानव में द्विबारदंती [Diphyodont] व्यवस्था पाई जाती है-
अस्थायी दांत [Milk Teeth]
स्थायी दांत [Permanent Teeth]
According to Structure and Functions
:- 4 Types
कृन्तक [Incisor] :-
काटने या कुतरने में
चूहे, गिलहरी आदि में अधिक विकसित होते है
हाथी के बाहरी दांत इस का ही रूपांतरण है, जो Curved Tusks कहलाते है |
Canine (रदनक) :-
चीरने या फाड़ने के काम आते हैं
मांसाहारी जन्तुओ में अधिक्विक्सित होते है |
इन्हें Vampire Teeth भी कहते है |
Anterior (अग्रचवर्णक) :-
ये भोजन को चबाने का कार्य करते है |
इनको cheek teeth भी कहते है |
Molar (चवर्णक) :-
ये भोजन को चबाने का कार्य करते है |
ये मनुष्य में पाया जाने वाला सबसे विकसित प्रकार का दांत है | जैसे – अक्ल दाढ
कृत्रिम दांत एक्रिलिक रेजिन द्वारा लगाये जाते है |
जिह्वा :-
ये पेशीय अंग है जो जिह्वा फ्रेनुलम से मुख पृष्ठ पर
जुडी रहती है | यह भोजन को लार में मिलाती है | बोलने में सहायता करती है | इसमें स्वाद जानने के लिए
रस-कलिकाए पाई जाती है-
फिलिफॉर्म पैपिला
फॉलिऐट पैपिला
फंजीफॉर्म पैपिला
वेलेट पैपिला
ग्रसनी [Pharynx] :-
मुख गुहा जिह्वा व तालु के पीछले भाग एक छोटी सी कुप्पीनुमा
संरचना जुडी होती है |ग्रसनी से ही भोजन मुख के आगे जाता है | मुख्यतः ग्रसनी की
संरचना को तीन भागों में विभक्त किया गया है –
नासाग्रसनी [Nasopharynx]
मुख-ग्रसनी [Oropharynx]
कंठ-ग्रसनी या अधो-ग्रसनी [Laryngopharynx or Hypopharynx]
ग्रसनी ग्रसिका (ग्रासनली Oesophgus) में खुलती है
ग्रासनली या ग्रसिका [Oesophagus] :-
यह एक संकरी पेशीय नाली है जो लगभग 25 सेमी लम्बी होती है |
यह आमाशय तथा ग्रसनी को जोडती है | यह डायफ्राम को क्रास करते हुए आमाशय में खुलती
है | इसमें क्रमानुकुंचन (Peristalsis) गति द्वारा भोजन आमाशय तक पहुँचता है |इसमें कुछ श्लेष्मा
ग्रंथियां मिलती है जो भोजन को लसदार बनाती है |
ग्रासनली के शीर्ष पर ऊतकों का एक पल्ला होता है जिसे घाटी
ढक्कन या एपिग्लोटिस {Epiglottis} कहते है |
यह भोजन को श्वाशनाली में जाने से रोकता है |
आमाशय [Stomach] :-
ग्रासनली के बाद भोजन आमाशय में जाता है | यह एक J आकार की
पेशीय संरचना होती है |यह उदरगुहा के बाएँ हिस्से में होता है | यह एक लचीला अंग
तथा एक बार में लगभग 3 लीटर आहार ग्रहण कर सकता है |
यह मनुष्य के शरीर में बायीं तरफ होता है इस मुख्यतः तीन
भागों में विभक्त किया है –
जठरागम [Cardiac] :- यह बांया बड़ा भाग है जहाँ से ग्रसिका आमाशय में
खुलती है |
जठर निर्गम [Pyloric] :- यह आमाशय का दाहिना छोटा भाग है जहाँ से आमाशय
छोटी आंत से जुड़ता है |
फंडस या काय [Fundic/Body] :- यह उपरोक्त दोनों भागो के
मध्य की संरचना है |
आमाशय की भित्ति में जठर ग्रंथि (Gastric Glands) पाई जाती है |
छोटी आंत [Small Intestine] :-
यह आमाशय के अंतिम भाग से शुरू होती है तथा बड़ी आंत में
जुडती है |मनुष्य में इसकी ओसतन लम्बाई 7 मीटर (22.96 फुट)होती है | पाचन तंत्र के इस भाग में ही सबसे अधिक
पाचन तथा अवशोषणहोता है | यह पाचन तंत्र की सबसे लम्बी,संकरी तथा नलिकाकार (Tubular) संरचना है | इसे मुख्यतः तीन भागों में विभक्त
किया है –
गृहणी [Duodenum] :-
यह C – आकार की होती है | आमाशय
(Stomach) इसमें ही खुलता है | यह छोटी आंत का सबसे छोटा भाग है | यहाँ
भोजन का पाचन एंजाइमों द्वारा होता है |
अग्रक्षुदांत्र [Jejunum] :-
यह ग्रहणी (Duodenum) तथा क्षुदांत्र (Ileum) के मध्य का भाग है | यहाँ
पर गृहणी द्वारा पाचित भोजन का अवशोषण होता है | इसमें आंत्रकोश्काओ द्वारा भोजन
का अवशोषण होता है |
क्षुदांत्र [Ileum] :-
यह छोटी आंत का अंतिम भाग है | जो बड़ी आंत (Large Intestine) के अधांन्त्र (अंधनाल Cecum) में खुलता है | यहाँ पर उन पोषकों का अवशोषण होता है जो अग्रक्षुद्रांत्र में
अवशोषित नहीं हो सके जैसे – पित्त लवण तथा विटामिन्स |
बड़ी आंत (Large Intestine) :-
यह क्षुद्रांत से शुरू होती है | इसका व्यास छोटी आंत से
बड़ा होने के कारण इसको बड़ी आंत कहते है | इसका व्यास 4-6 cm होता है | यहाँ पर कुछ जीवाणु पाये जाते है |
ये जीवाणु छोटी आंत से शेष बचे भोजन को किण्वन क्रिया के द्वारा सरलीकृत करते है |इसका प्रमुख कार्य
खनिजो तथा जल का अवशोषण करना है |
इस मुख्यतः तीन भागों में विभक्त किया है –
अधान्त्र या अंधनाल (Cecum)
वृहदान्त्र (Colon)
मलाशय (Rectum)
अधान्त्र या अंधनाल (Cecum) :-
यह भाग क्षुद्रांत से जुड़ा रहता है |यहाँ पाचित आहार रस का
अवशोषण कर शेष अपशिष्ट को आगे भेज दिया जाता है | अन्धनाल के प्रथम भाग से थोडा
नीचे भीतर की ओर 4-5 इंच लम्बी नाली के आकार का अंग निकला रहता है |इसे कृमिरूप
परिशेषिका खा जाता है |
वृहदान्त्र (Colon) :-
यह बड़ी आंत (Large Intestine) का सबसे बड़ा भाग है | यह उल्टे U आकार की होती है
|इसकी लम्बाई 1.3 मी. होती है |इस मुख्यतः चार भागों में विभक्त किया है –
आरोही वृहदान्त्र :-
इसकी लम्बाई करीब 15 सेमी. होती है |
अनुपस्थ वृहदान्त्र :-
इसकी लम्बाई करीब 50 सेमी. होती है |
अवरोही वृहदान्त्र :-
इसकी लम्बाई करीब 25 सेमी. होती है |
सिग्माकर वृहदान्त्र :-
इसकी लम्बाई करीब 40 सेमी. होती है |
मलाशय (Rectum) :-
यह आहार नाल का अंतिम भाग
होता है |यह करीब 20 सेमी लम्बा होता है | मलाशय का अंतिम भाग गुदानाल कहलाता है |
गुदानाल में संवरनी पेशीयाँ पायी जाटी है जो अपशिष्ट को बाहर निकालने की प्रक्रिया
को नियंत्रित करती है |
पाचन ग्रंथियॉ [Accessory Digestive Glands]
लार ग्रन्थि (Salivary Gland)
यकृत ग्रन्थि (Liver)
अग्नाशय ग्रन्थि (Pancreas)
लार ग्रन्थि (Salivary Gland) :-
ये मुख गुहा में खुलती है, इनकी उत्पत्ति एक्टोडर्म (Ectoderm) से होती है | मानव में इनकी सख्या तीन जोड़ी है
| जो-
कर्णपूर्ण लार ग्रन्थि (Parotid Gland) :-
यह सीरमी तरल का स्त्राव
करती है तथा गालो में पाई जाती है |
अधोजंभ या अवचिबुकीय लार ग्रन्थि (Sub-Mandibular Salivary Gland) :-
यह एक मिश्रित ग्रंथि है
जिससे तरल तथा श्लेष्मिक स्त्राव करती है |
अधोजिह्वा ग्रन्थि (Sublingual Gland) :-
यह जिह्वा के नीचे पाई जाती है तथा श्लेष्मिक
स्त्राव करती है |
लार (Saliva) :-
यह ग्रंथि मुंह में लार उत्पन्न करती है | लार
एक सीरमी तरल तथा एक चिपचिपे श्लेष्मा का मिश्रण होता है | तरल भाग भोजन को गीला
करता है | श्लेष्मा लूब्रिकेंट के तौर पर कार्य करता है | लार का pH मान 6.5 के करीब
होता है |
यकृत ग्रन्थि (Liver) :-
यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है इसकी उत्पत्ति एन्ड़ोडर्म से
होती है | यकृत (Liver) का वयस्क मनुष्य में भार
लगभग 1.2-1.5kg होता है |इसका रंग लाल-भूरा होता है |
यकृत में पुनरुद्धभवन की क्षमता सबसे अधिक होती है |
(NOTE :- मस्तिष्क में पुनरुद्धभवन
की क्षमता सबसे कम होती है | )
शर्करा के अधिक मात्रा में होने से यकृत इसे वसा में बदलता
है इसे लीपोजेनेसिस कहते है | अमीनो अम्लो को यकृत NH3 में बदलता है |
अग्नाशय ग्रन्थि (Pancreas) :-
यह एक
मिश्रित ग्रंथि है जो अंतः स्त्रावी हार्मोन इन्सुलिन (Insulin) तथा ग्लुकेगोन (Glucagon) तथा बाह्य स्त्रावी
हार्मोन अग्नाशय रस स्त्रावित करती है |यह 6-8 इंच लम्बी होती है | इसके द्वारा
स्त्रावित एंजाइम प्रोटीनों, वसा और कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायता करते है |
इन्सुलिन (Insulin) तथा ग्लुकेगोन (Glucagon) हार्मोन शरीर में शर्करा की मात्रा नियंत्रित रखते है |
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न :-
पाचन तंत्र से
आप क्या समझते हैं?
|
भोजन का पाचन
कहाँ होता है?
|
मानव शरीर में
पाचन क्रिया कैसे होती है?
|
पाचन तंत्र को
कैसे सही करें?
|
पाचन तंत्र
में अंगों का सही क्रम कौन सा है?
|
जठर रस में
कौन सा एंजाइम पाया जाता है?
|
भोजन के पाचन
में लार की क्या भूमिका है?
|
पाचन तंत्र
कितने प्रकार के होते हैं?
|
पाचन एंजाइम
का क्या कार्य है?
|
लार ग्रंथियों
द्वारा कौन सा पाचक रस स्रावित होता है?
|
आमाशय में
पाचन कैसे होता है?
|
स्टार्च का
पाचन कहाँ होता है?
|
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