परिचय :- विषाणु शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द वायरस से हुई है | इसका अर्थ है विषैला तरल|
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डी. इवैनोविस्कीरूसी वैज्ञानिक ने तम्बाकू के रोगी पौधो की पत्तियों
के रस को स्वस्थ पौधो की पत्तियो पर रगडा तो उन पोधो में भी रोग के लक्ष्ण
दिखे | औरइवैनोविस्की ने पत्तियों के मोजेक रंग के होने का कारण “तम्बाकू
मोजक वायरस” बताया |
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इसकी खोज का श्रेयइवैनोविस्की
को दिया जाता है |
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बेजेरिंक ने इस रोग को उत्पन्न करने वाले द्रव्य का नाम“कोंटेगियम
वाईवम फ्लूइडम” रखा|
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वर्ष 1935 मेंस्टेनली ने TMV कोक्रिस्टलीकरण
द्वारापृथक करने में सफलता प्राप्त की | इस
कार्य के लिए इनको नोबेल पुरस्कार दिया गया|
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आधुनिक काल में अनेको “वायरसों
की खोज” हुई है | वायरसआकार, परिमाणव आकृति में एक दुसरे से भिन्न होते
है | ये सभी “अल्प जीवी परजीवी” होते है जो जंतुओं में रहते है |
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वायरस के अध्ययन को“वायरोलोजी”
कहाजाता है |
विषाणु के जैविक प्रकृति :-
विषाणुओं को प्रकृति कीविचित्र संरचना कहा जाता
है| इनमे कुछ लक्षण सजीवों एवं कई लक्षणनिर्जीवों
के मिलते है |इसलिएविषाणुओं को सजीवों तथा निर्जीवों के मध्य की संयोजक कड़ी
कहा जा सकता है |
विषाणुओं के जैविक गुण :
1.
विषाणु में उत्परिवर्तन प्रमुख लक्षण है |
2.
विषाणुओं का प्रवर्धन
केवल जीवित कोशिकाओं में ही होता है|
3.
विषाणु परपोषी विशिष्टता
दर्शते है |
4.
विषाणु में कोशिका विभाजन
नहीं होता है |
5.
विषाणुओं में प्रतिजनी गुण
पाए जाती है |
6.
विषाणुओं में अनुवांशिक
पदार्थD.N.A. या R.N.A. पाए जाते है |
विषाणुओं के अजैविक गुण :
1.
इनमे एंजाइम नहीं होते |
2.
विषाणु अपनी परपोषी
कोशिका के बाहर निर्जीव होते है |
3.
विषाणुओं का क्रिस्टलीकरण
किया जा सकता है |
4.
विषाणु में कार्यात्मक स्वायत्त नहीं होती |
5.
विषाणुओं में श्वशन नहीं
होता है |
6.
इनमे कोशिकीय संरचना नहीं
होती है |
संरचना :
अब तक ज्ञात सबसेछोटावायरस 0.00001 मिमी का होता है | आकार की द्रष्टी से यह गोलाकार छड के समान बहुकोणीय होते है |
रचनात्मक द्रष्टि से
वायरस के तीन भाग होते है – प्रोटीन कैप्दिस, न्यूक्लिक अम्ल, आवरण| विषाणु के एक
कण को विरीयोन कहते है |
प्रत्येक वायरस के चारो और प्रोटीन की एक खोल होतीहै|
इसेकैप्सिड कहा जाता है |
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